नुकताच, १४ सप्टेंबर रोजी हिंदी दिवस साजरा झाला. या निमित्ताने हिंदी ची महती सांगणाऱ्या २ कविता त्याच दिवशी प्रसिध्द केल्या आहेत.
आज काही कविता पुढे सादर करीत आहे.
– संपादक
१ ) हिन्दी
भारतीय मस्तक का नाज है हिन्दी
सभी भावनाओं का ताज है हिन्दी
हिन्दी है पूजा की थाली में आरती
सभी सुंदर पक्षियोंमें बाज हैं हिन्दी
मां की ममता का प्यारा गीत है हिन्दी
बिछड़े हुए लोगों का मीत है हिन्दी
हिन्दी प्यासे के लिए मीठे पानी का घडा
परंपराओं की अनोखी रीत है हिन्दी
देश को जोड़ने वाली तार है हिन्दी
अपना-सा लगनेवाला यार है हिन्दी
हिन्दी है राष्ट्रप्रेम बुननेवाला धागा
मां दादी बहना का दुलार है हिन्दी
गीत संगीत के विविध छंद है हिन्दी
केवडे जैसे फुलों का सुगंध है हिन्दी
हिन्दी है अनगिनत रंगों की बौछार
मीठे मीठे फुलों का गुलकंद है हिन्दी
होली के रंग दिवाली का प्रकाश है हिन्दी
सुहागन के माथे का सिन्दूरी आकाश है हिन्दी
हिन्दी है खिलखिलाती ईठलाती हंसी
वात्सल्य से भरी मां-बाप की मुस्कान है हिन्दी
– रचना : प्रा मोहन ज्ञानदेवराव काळे. अकोला
२ ) !! हमारी हिन्दी !!
हमारी उपेक्षित हिन्दी
हो गयी एक दिन लापता
रो पडी ग्लानी से,
सोचने लगी परेशानी से
क्या है मुझे मान ?
मेरे ही घर मेरा ही अपमान
चल पडी थी रास्ते पर हो के नाराज
देखा ! तो सब जगह अंग्रेजीका ही राज
प्यार के साथ अंग्रजीने उसे संभाला !
अपनी ही देश मे ‘अतिथी’ रूप से पाला
नाराज ही नही बल्की दुःखी होके
हिन्दी, अंग्रेजी के साथ रहेने लगी !
‘हिन्दी दिन’ मे आई सरकार को याद
अपनी राष्ट्र-भाषा की
जागतिक स्तर पर हिन्दी का
महत्त्व प्रकट कर ‘दिप’ जलाने की !
हिन्दूस्तान ने देखा ढूंडा गली गली
उपेक्षित हिन्दी कही नही मिली !
कही मेहनत, प्रयास के बाद
दूबली, पतली हिन्दी
अंग्रेजी के घर मिली !
सरकार बोली हिन्दी को चलो देवी
उपेक्षित और अपमानित हिन्दी बोली !
हमे नही है आना !
सिर्फ ‘पंद्रह दिन’ मेरा स्वागत ओर मान !
बाकी के दिन अंग्रेजी की शान !
कही अनुनय, विनय और आग्रह के बाद
‘हिन्दी’ आने के लिए मान गयी !
अपनी लोगोंको माफ कर ‘पखवाडा’ मे आई
सरकार ने हिन्दी का महत्त्व जान लिया!
हिन्दी भाषा को ‘राजसभा’ से सन्मानित किया !
दूःखभरी आंखोसे हिन्दी मनोगत बोलने लगी
में बहोत अच्छी हू ! एक सरल भाषा हू !
प्रेम से अलग अलग राज्यों को
बोली भाषा से जोडणे वाली हू !
मुझे एहसास करो, थोडासा प्रयास करो
ग्रंथालय मे सुलभ हिन्दी साहित्य पढो !
मै देश की उन्नती और विश्व की शान बनुगीं !
फिर हिन्दी पखवाडा मे मुझे ढूढणे की
आवश्यकता नही रहेगी !
अपने ही घर मे पंद्रह दिन की
‘अतिथी’ बन के नही रहूगी !
‘अतिथी’ बन के नही रहूगी !
‘अतिथी’ बन के नही रहूगी !

– रचना : पूर्णिमा शेंडे. मुंबई
– संपादन : अलका भुजबळ. ☎️ 9869484800
मस्त मस्त हिन्दी कविता…हिन्दीत बोलायला जेवढे छान वाटते तेवढेच सरकारी कार्यालयात हिन्दीत टिपण्या लिहायला जिकरीचे होत असे तेव्हा ‘हिन्दी’ माझ्याशी बोलता बोलता ती माझ्या कागदावर कधी उमटत गेली कळलेच नाही…माझी लाडकी…माझी हिन्दी भाषा.
🌹सुंदर कविता 🙏🙏🌹