देहाची तिजोरी
देही आत्माराम।
दिसे ना मजला।
शोधते तुजला। रात्रंदिन।।१।।
किती शोध घेऊ।
ह्रदय गाभारी।
देहाची तिजोरी। उघडावी।।२।।
प्रेम माझे फार।
असे देहावर।
देह हा नश्वर।
मोहपाश।।३।।
जाणून तरी मी।
संग का सुटेना।
आसक्ती मिटेना। संसाराची।।४।।
दास रामाचा।
सांगतसे जना।
समज रे मना।
देह काय।।५।।
वृक्षाच्या मुळाशी।
बीज जसे असे।
फळ तेथे वसे।
नियम हा।।६।।
तद्वतच आहे।
देह आणि आत्मा।
नसे परमात्मा। देहाविना।।७।।
तिजोरीत बंद।
आहे भगवंत।
नाम जप नित। दर्शनासी।।८।।
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— रचना : अरूणा मुल्हेरकर. मिशिगन, अमेरिका
— संपादन : देवेंद्र भुजबळ. ☎️ 9869484800
अरूणा ताई
छान शब्दांची तिजोरी. आवडली. अभिनंदन