ठंडी ठंडी बर्फीली वादियों में
घूम रहे थे दोनों,
दिल धड़क रहे थे दोनों के
प्यार भरे, उमंगों के
नाजूक प्रीत दिल छूना चाहते
नई जिंदगी की नई मंजिल कितने रंगिन,
अपने ही ख्वाबों को सजाते
चिनार की फुसफुसाहट को
हौले से गले लगातें
क्यों आये कहीं से वे
बंदूक धारी, नफ़रत भरे शख्स
कश्मीर की खूबसूरत हरी हरी वादियों में
छिटक गया लहू का रंग
सैलानियों की किलकारियां
हो गई शांत, शांत, स्तब्ध
अभी अभी तो हँस रहे थे
क्यों हुआ ऐसा अंत
आसमान भी हुआ विकल
देश मे छाया शोक
स्वर्ग देखने, करने अटखेली आने वाले को
क्यों मिली दर्दनाक मौत ?
दहशतवादियों, सुन लो तुम भी
अब नहीं बहेंगे आंसू
श्रद्धा के ये फूल चढ़ाकर, लेंगे नए वचन
अब नही लिखेगा कोई, ऐसी कहानी गर्द की
चिनार फिर से मुस्काएगा, वादियाँ झूमेंगी हरी

— रचना : सौ. स्वाती वर्तक. मुंबई
— संपादन : देवेंद्र भुजबळ.
— निर्माती : सौ अलका भुजबळ. ☎️ 9869484800