Sunday, November 2, 2025

नदी

निर्झर नूतन
निर्मळ पावन
मिरवित आनंद केतन
दुडुदुडू धावत जाई …..

डोंगर उतरणी
उतरत मनहरणी
पार करत अडचणी
गाणे हासत गाई …..

संगीसाथी भेटले
नदीरुप घेतले
पुढेपुढे वाहू लागले
कशाची हिला घाई ? …..

अंगणी उतरे
तरंगिणी लहरे
प्रवाह जोर धरे
संथ वहा ऽ कृष्णामाई ….

— रचना : विजया केळकर. नागपूर
— संपादन : देवेंद्र भुजबळ. ☎️ 9869484800

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